हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और
हो जाएगी जब तुम से शनासाई ज़रा और बढ़ जाएगी शायद मिरी तंहाई ज़रा और क्यूँ खुल गए लोगों पे मिरी ज़ात के असरार ऐ काश कि होती मिरी गहराई ज़रा और फिर हाथ पे ज़ख़्मों के निशाँ गिन न सकोगे ये उलझी हुई डोर जो सुलझाई ज़रा और तरदीद तो कर सकता था फैलेगी मगर बात इस तौर भी होगी तिरी रुस्वाई ज़रा और क्यूँ तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ भी किया लौट भी आया? अच्छा था कि होता जो वो हरजाई ज़रा और है दीप तिरी याद का रौशन अभी दिल में ये ख़ौफ़ है लेकिन जो हवा आई ज़रा और लड़ना वहीं दुश्मन से जहाँ घेर सको तुम जीतोगे तभी होगी जो पस्पाई ज़रा और बढ़ जाएँगे कुछ और लहू बेचने वाले हो जाए अगर शहर में महँगाई ज़रा और इक डूबती धड़कन की सदा लोग न सुन लें कुछ देर को बजने दो ये शहनाई ज़रा और