उसी तरह से हर इक ज़ख्म खुशनुमा देखे
गज़ल / Ghazal
उसी तरह से हर इक ज़ख्म खुशनुमा देखे
वो आये तो मुझे अब भी हरा भरा देखे
गुज़र गए हैं बहुत दिन शब ए हिज्र में
इक उम्र हो गई चेहरा वो चाँद सा देखे
मेरी खामोशी से जिसको गिले रहे क्या क्या
बिछड़ते वक़्त उन आँखों का बोलना देखे
तिरे सिवा भी कई रंग खुश नज़र थे मगर
जो तुझको देख चुका हो वो और क्या देखे
बस एक रेत का ज़र्रा बचा था आँखों में
अभी तलक जो मुसाफ़िर का रास्ता देखे
तुझे अज़ीज़ था और मैंने उसको जीत लिया
मेरी तरफ भी तो इक पल तेरा खुदा देखे
Posted by Raees Khan
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