कच्चे घर और पक्के रिश्ते होते थे

कविता / Kavita

कच्चे घर और पक्के रिश्ते होते थे
गांव वाले कितने मीठे होते थे

सुना है हर दरवाजे में अब ताला है
पहले तो हर सहन से रास्ते होते थे

सुना है अब तो आधा गांव बाहर है
पहले तो खेतों में पैसे होते थे

सुना है अब तो खुश्क पङी हैं नदियां भी
याद है ? बादल कितने गहरे होते थे

सुना है बच्चे घर में सहमे रहते हैं
पहले तो गलियों में मेले होते थे

सुना है सबके पास है टच मोबाइल अब
पहले तो हर जेब में कैंचे होते थे

क्या अब भी कोई खेलता है उस बरगद पर
जिस से हम दिन भर  चिपके होते थे

खैर ! फिर बीती बातों को क्या याद करना
ये उन दिनों की बात है जब हम बच्चे होते थे

Posted by : Raees Khan 

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