गज़ल हिज्र में खून रुलाते हो, कहां होते हो लौटकर क्यों नहीं आते हो, कहां होते हो जब भी मिलता है कोई शख्स बहारों जैसा मुझको तुम कैसे भुलाते हो, कहां होते हो याद आती है अकेले में तुम्हारी नींदे किस तरह खुद को सुलाते हो, कहां होते हो मुझसे बिछड़े हो तो महबूब ए नज़र हो किसके ? आजकल किस को मनाते हो, कहां होते हो शब की तन्हाई में अक्सर ये ख्याल आता है अपने दुख किसको सुनाते हो, कहां होते हो मौसम ए ग़ुल में नशा हिज्र का बढ़ जाता है मेरे सब होश चुराते हो, कहांते होते हो तुम तो खुशियों की रफाकत के लिए बिछड़े थे अब अगर अश्क बहाते हो, कहां होते हो शहर के लोग भी अक्सर यही करते हैं सवाल अब बहोत कम नजर आते हो, कहां होते हो Posted by : Raees Khan