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Showing posts from February, 2019

सरे राह कुछ भी कहा नहीं, Sare raah kuchh bhi kaha nahin

गज़ल /Ghazal सरे राह कुछ भी कहा नहीं, कभी उसके घर भी गया नहीं मैं जनम-जनम से उसी का हूँ, उसे आज तक ये पता नहीं तेरे प्यार की खुशबू सदा मेरी सांसों में बसी  रही कोई फूल लाख क़रीब हो, कभी मैंने उसको छुआ नहीं ये ख़ुदा की देन अज़ीब है, कि इसी का नाम नसीब है जिसे तूने चाहा मिल गया, जिसे मैंने चाहा मिला नहीं इसी शहर में कई साल से मेरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैं उन्हें मेरी कोई ख़बर नहीं, मुझे उनका कोई पता नहीं Posted by : Raees Khan 

सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में

गज़ल / Ghazal सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में बस ज़रा वफ़ा कम है तेरे शहर वालों में पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखा हम जवाब क्या देते खो गये सवालों में रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा जैसे कोई चुटकी ले नर्म नर्म गालों में मेरी आँख के तारे अब न देख पाओगे रात के मुसाफ़िर थे खो गये उजालों में Posted by : Raees Khan 

आंखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा

गज़ल / Ghazal आंखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा कश्ती के मुसाफिर ने समंदर नहीं देखा बेवक्त अगर जाऊंगा सब चौंक पड़ेंगे इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा जिस दिन से चला हूं मेरी मंजिल पर नजर है आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा यह फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं तुमने मेरा कांटों भरा बिस्तर नहीं देखा पत्थर मुझे कहते हैं मेरे चाहने वाले मैं मोम हूं किसी ने मुझे छू कर नहीं देखा कहता है कि बिछड़े हुए मुद्दत नहीं गुजरी लगता है कभी उसने कलेंडर नहीं देखा महबूब की गलियां हों कि बुजुर्गों की हवेली जो छोड़ दिया उसको पलट कर नहीं देखा Posted by : Raees Khan Dudhara