सरे राह कुछ भी कहा नहीं, Sare raah kuchh bhi kaha nahin

गज़ल /Ghazal

सरे राह कुछ भी कहा नहीं, कभी उसके घर भी गया नहीं
मैं जनम-जनम से उसी का हूँ, उसे आज तक ये पता नहीं

तेरे प्यार की खुशबू सदा मेरी सांसों में बसी रही
कोई फूल लाख क़रीब हो, कभी मैंने उसको छुआ नहीं

ये ख़ुदा की देन अज़ीब है, कि इसी का नाम नसीब है
जिसे तूने चाहा मिल गया, जिसे मैंने चाहा मिला नहीं

इसी शहर में कई साल से मेरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैं
उन्हें मेरी कोई ख़बर नहीं, मुझे उनका कोई पता नहीं


Posted by : Raees Khan 

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