आंखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा

गज़ल / Ghazal

आंखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफिर ने समंदर नहीं देखा

बेवक्त अगर जाऊंगा सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा

जिस दिन से चला हूं मेरी मंजिल पर नजर है
आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा

यह फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुमने मेरा कांटों भरा बिस्तर नहीं देखा

पत्थर मुझे कहते हैं मेरे चाहने वाले
मैं मोम हूं किसी ने मुझे छू कर नहीं देखा

कहता है कि बिछड़े हुए मुद्दत नहीं गुजरी
लगता है कभी उसने कलेंडर नहीं देखा

महबूब की गलियां हों कि बुजुर्गों की हवेली
जो छोड़ दिया उसको पलट कर नहीं देखा

Posted by : Raees Khan Dudhara

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