हिज्र की पहली शाम के साये दूर उफ़क़ तक छाये थे हम जब उसके शहर से निकले सब रास्ते सँवलाये थे जाने वो क्या सोच रहा था अपने दिल में सारी रात प्यार की बातें करते करते उस के नैन भर आये थे मेरे अन्दर चली थी आँधी ठीक उसी दिन पतझड़ की जिस दिन अपने जूड़े में उसने कुछ फूल सजाये थे उसने कितने प्यार से अपना कुफ़्र दिया नज़राने में हम अपने ईमान का सौदा जिससे करने आये थे कैसे जाती मेरे बदन से बीते लम्हों की ख़ुश्बू ख़्वाबों की उस बस्ती में कुछ फूल मेरे हम-साये थे रुख़्सत के दिन भीगी आँखों उसका वो कहना हाए तुम को लौट ही जाना था तो इस नगरी क्यूँ आये थे Posted by : Raees Khan
मत रोको इन्हें पास आने दो ये मुझ से मिलने आए हैं मैं ख़ुद न जिन्हें पहचान सकूँ कुछ इतने धुँदले साए हैं अलसाई हुई रुत सावन की कुछ सौंधी ख़ुश्बू आँगन की कुछ टूटी रस्सी झूले की इक चोट कसकती कूल्हे की कुछ चाँदनी रातें गर्मी की इक लब पर बातें नरमी की कुछ चाँद चमकते गालों के कुछ भँवरे काले बालों के कुछ नाज़ुक शिकनें आँचल की कुछ नर्म लकीरें काजल की इक खोई कड़ी अफ़्सानों की दो आँखें रौशन-दानों की इक सुर्ख़ दुलाई गोट लगी क्या जाने कब की चोट लगी इक छल्ला फीकी रंगत का इक लॉकेट दिल की सूरत का रूमाल कई रेशम से कढ़े वो ख़त जो कभी मैं ने न पढ़े कुछ उजड़ी माँगें शामों की आवाज़ शिकस्ता जामों की कुछ टुकड़े ख़ाली बोतल के कुछ घुँगरू टूटी पायल के कुछ बिखरे तिनके चिलमन के कुछ पुर्ज़े अपने दामन के ये तारे कुछ थर्राए हुए ये गीत कभी के गाए हुए कुछ शेर पुरानी ग़ज़लों के उनवान अधूरी नज़्मों के टूटी हुई इक अश्कों की लड़ी इक ख़ुश्क क़लम इक बंद घड़ी कुछ रिश्ते
कविता अमन अक्षर ये तुम्हारी गली का सरल रास्ता हमसे पूछो तो सबसे कठिन राह है चंद कदमों की दूरी की इस फेर ने वक्त ने रोज मीलों चलाया हमें तुम प्रतीक्षा के वो मौन संवाद थे जिसने दुनिया की भाषा बनाया हमें हम तो यूँ ही निकल आये खो गए मन मगर अपनी मर्जी से गुमराह है ये तुम्हारी गली का सरल रास्ता हमसे पूछो तो सबसे कठिन राह है लाख विश्वास हमने संभाले मगर एक संदेह जाते जमाने लगे हमें जीवन के दिन थे बंनाने मगर हम यहां रोज राते कमाने लगे खुद से कोई वचन जो,निभाया नहीं एक तुम्हारे वचन का ही निर्वाह है ये तुम्हारी गली का सरल रास्ता हमसे पूछो तो सबसे कठिन राह है अमन अक्षर Posted by : Raees Khan
الہام کی رم جھم کہیں بخشش کی گھٹا ہے یہ دل کا نگر ہے کہ مدینے کی فضا ہے سانسوں میں مہکتی ہیں مناجات کی کلیاں کلیوں کے کٹوروں پہ تیرا نام لکھا ہے آیات کی جُھرمٹ میں تیرے نام کی مَسند لفظوں کی انگوٹھی میں نگینہ سا جڑا ہے اب کو ن حدِ حسن طلب سوچ سکے گا کونین کی وسعت تو تہہ ِ دستِ دعا ہے ہے تیری کَسک میں بھی دَمک حشر کے دن کی وہ یوں کہ میرا قریہ ِ جاں گُونج اُٹھا ہے خورشید تیری راہ میں بھٹکتا ہوا جگنُو مہتاب تیرا ریزہ ِ نقشِ کف ِ پا ہے ولیل تیرے سایہ ِ گیسُو کا تراشا ولعَصر تیری نیم نگاہی کی ادا ہے لمحوں میں سمٹ کر بھی تیرا درد ہے تازہ صدیوں میں بکھر کر بھی تیرا عشق نیا ہے یا تیرے خدوخال سے خیرہ مہ و انجم یا دھوپ نے سایہ تیرا خود اُوڑھ لیا ہے یا رات نے پہنی ہے ملاحت تیری تن پر یا دن تیرے اندازِ صباحت پہ گیا ہے رگ رگ نے سمیٹی ہے تیرے نام کی فریاد جب جب بھی پریشاں مجھے دنیا نے کیا ہے خالق نے قسم کھائی ہے اُس شہر ِ اماں کی جس شہر کی گلیوں نے تجھے وِرد کیا ہے اِک بار تیرا نقشِ قدم چوم لیا تھا اب تک یہ فلک شُ