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Showing posts from April, 2021

भले दिनों की बात है, भली सी एक शक्ल थी - Bhale dino ki baat hai, bhali si ek shakl thi

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भले दिनों की बात है, भली सी एक शक्ल थी न ये कि हुस्न ए ताम हो, न देखने में आम सी न ये कि वो चले तो कहकशाँ सी रहगुज़र लगे मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे कोई भी रुत हो उस की छब, फ़ज़ा का रंग-रूप थी वो गर्मियों की छाँव थी, वो सर्दियों की धूप थी न मुद्दतों जुदा रहे, न साथ सुब्ह-ओ-शाम हो न रिश्ता ए वफ़ा पे ज़िद, न ये कि इज़्न-ए-आम हो न ऐसी ख़ुश-लिबासियाँ, कि सादगी गिला करे न इतनी बे-तकल्लुफ़ी, कि आइना हया करे न इख़्तिलात में वो रम, कि बद-मज़ा हों ख़्वाहिशें  न इस क़दर सुपुर्दगी, कि ज़च करें नवाज़िशें  न आशिक़ी जुनून की, कि ज़िंदगी अज़ाब हो  न इस क़दर कठोर-पन, कि दोस्ती ख़राब हो  कभी तो बात भी ख़फ़ी, कभी सुकूत भी सुख़न कभी तो किश्त ए ज़ाफ़राँ, कभी उदासियों का बन सुना है एक उम्र है, मुआमलात-ए-दिल की भी विसाल ए जाँ-फ़ज़ा तो क्या, फ़िराक़ ए जाँ-गुसिल की भी  सो एक रोज़ क्या हुआ, वफ़ा पे बहस छिड़ गई  मैं इश्क़ को अमर कहूँ, वो मेरी ज़िद से चिड़ गई  मैं इश्क़ का असीर था, वो इश्क़ को क़फ़स कहे  कि उम्र भर के साथ को, वो बदतरज़ हवस कहे  शजर हजर नहीं कि हम, हमेशा पा बा गिल रहें  ना ढोर हैं कि रस

तूने सीने को जब तक खलिश दी ना थी

 तूने सीने को जब तक खलिश दी ना थी तूने जज़्बों को जब तक उभारा ना था मैं वो दरिया था जिसमें की लहरें ना थीं मैं वो कलज़म था जिसमें की धारा ना था साज़ फरियाद के दिल ने छेड़े ना थे मिलने-बिछड़ने के ये बखेड़े ना थे हमने सीने के ज़ख़्म उधेड़े ना थे तुमने ज़ुल्फों को अपनी संवारा ना था तुझमें दरिया कोई किस सहारे चले मैं जो पश्चिम तू पूरब के धारे चले मेरे कश्ती किनारे-किनारे चले तेरी मौज़ों को ये भी गवारा ना था देख परवाने के रक्स ए बेताब को शमआ आने ना दे आँख में ख्वाब को एक हिचकी सी आयी थी महताब को आँख खोली तो कोई सितारा ना था सारे अफसाना ए इश्क इसी महफिल के थे क़ैस सहरा का था, रांझा जंगल के थे हम भी गुलाम अपने ही दिल के थे हम दीवानों का कोई सहारा ना था

हुस्न माइल बा सितम हो, तो ग़ज़ल होती है

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जिसकी झंकार से दिल को आराम था, वो तेरा नाम था

 जिस की झंकार में दिल को आराम था, वो तेरा नाम था मेरे होठों पर रक्सां जो एक नाम था, वो तेरा नाम था तोहमतें मुझ पर आती रही हैं कई, एक से इक नई खूबसूरत मगर जो इक इल्जाम था, वो तेरा नाम था दोस्त जितने थे ना आशना हो गए, पारसा हो गए साथ मेरे जो रुसवा सरेआम था,वो तेरा नाम था सुबह से शाम तक जो मेरे पास थी, वो तेरी आस थी शाम के बाद जो दिल का पैगाम था, वो तेरा नाम था मुझ पर किस्मत रही हमेशा मेहरबां, दे दिया सारा जहां पर जो सबसे बड़ा एक ईनाम था, वो तेरा नाम था

अब के तज्दीद ए वफा का - Ab ke tajdeed wafa ka

 अब के तजदीद ए वफ़ा का नहीं इम्कां जानां याद क्या तुझको दिलायें तेरा पैमां जानां  यूँ ही मौसम की अदा देख के याद आया है  किस क़दर जल्द बदल जाते हैं इंसां जानां ज़िंदगी तेरी अता थी सो तेरे नाम की है  हमने जैसे भी बसर की तेरा एहसां जानां  दिल ये कहता है कि शायद है फ़सुर्दा तू भी  दिल की क्या बात करें दिल तो है नादां जानां  अव्वल अव्वल की मोहब्बत के नशे याद तो कर  बे पिये भी तेरा चेहरा था गुलिस्ताँ जानां  आख़िर आख़िर तो ये आलम है कि अब होश नहीं  रग ए मीना सुलग उट्ठी कि रग ए जां जानाँ  मुद्दतों से यही आलम न तवक़्क़ो न उमीद  दिल पुकारे ही चला जाता है जानां-जानां अब तेरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आये  और से और हुए दर्द के उनवाँ जानां हम कि रूठी हुई रुत को भी मना लेते थे  हमने देखा ही न था मौसम ए हिज्राँ जानां  होश आया तो सभी ख़्वाब थे रेज़ा-रेज़ा  जैसे उड़ते हुए औराक़ ए परेशां जानां #HumariZaban

ज़ख़्म ए उम्मीद भर गया कब का زخم امید بھر گیا کب کا

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मैंने इस तौर से चाहा तुझे अक्सर जानाँ - Maine is taur se chaha tujhe aksar jaana

 मैंने इस तौर से चाहा तुझे अक्सर जानाँ जैसे महताब को बे-अंत समंदर चाहे जैसे सूरज की किरण सीप के दिल में उतरे जैसे खुशबू को हवा रंग से हटकर चाहे जैसे गूंचे खिले मौसम से हिना मांगते हैं जैसे परवाने शम्मा से वफा मांगते हैं जैसे ख्वाबों में ख्यालों की कमां टूटती है जैसे बारिश की दुआ आबला-पा मांगते हैं मेरा हर ख्वाब मेरे सच की गवाही देगा वुस्अत ए दीद ने तुझसे तेरी ख्वाहिश की है मेरी सोचों में कभी देख सरापा अपना मैंने दुनियां से अलग तेरी परस्तिश की है मैंने चाहा कि तेरे हुस्न की गुलनार फ़िज़ा मेरी ग़ज़लों की क़तारों से दहकती जाये मैंने चाहा कि मेरे दिल से गुलिस्तां की बहार तेरी आँखों के गुलाबों से महकती जाये तय तो ये था कि सजाता रहे लफ्ज़ों का कंवल मेरे खामोश ख़्यालों में तकल्लुम तेरा रक्स करता रहे फिरता रहे खुशबू का खुमार मेरी ख्वाहिश के जज़ीरों में तबस्सुम तेरा तू मगर अजनबी माहोल की पावरदा किरण मेरी बुझती हुई रातों को सहर कर ना सकी तेरी आँखों में मसीहाई थी लेकिन तू भी इक नज़र डाल के ज़ख़्म ए दिल भर ना सकी तुझको एहसास भी है कि किसी दर्द का दाग आँख से दिल में उतर जाये तो क्या होता है ? तु कि