तूने सीने को जब तक खलिश दी ना थी
तूने सीने को जब तक खलिश दी ना थी
तूने जज़्बों को जब तक उभारा ना था
मैं वो दरिया था जिसमें की लहरें ना थीं
मैं वो कलज़म था जिसमें की धारा ना था
साज़ फरियाद के दिल ने छेड़े ना थे
मिलने-बिछड़ने के ये बखेड़े ना थे
हमने सीने के ज़ख़्म उधेड़े ना थे
तुमने ज़ुल्फों को अपनी संवारा ना था
तुझमें दरिया कोई किस सहारे चले
मैं जो पश्चिम तू पूरब के धारे चले
मेरे कश्ती किनारे-किनारे चले
तेरी मौज़ों को ये भी गवारा ना था
देख परवाने के रक्स ए बेताब को
शमआ आने ना दे आँख में ख्वाब को
एक हिचकी सी आयी थी महताब को
आँख खोली तो कोई सितारा ना था
सारे अफसाना ए इश्क इसी महफिल के थे
क़ैस सहरा का था, रांझा जंगल के थे
हम भी गुलाम अपने ही दिल के थे
हम दीवानों का कोई सहारा ना था
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