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Showing posts from September, 2020

कहाँ होते हो Kahan hote ho

कहाँ होते हो....  ख्वाब आँखों में बसाते हो, कहाँ होते हो रात भर मुझको जगाते हो, कहाँ होते हो एक अरसे से मुसलसल मुझे तन्हा करके किसकी महफिल को सजाते हो, कहाँ होते हो राह तकती है निगाहें रात के आखिर पहर तक लौट कर क्यों नहीं आते हो, कहाँ होते हो याद आती है तुम्हारी वो रूठ जाने की अदा आज कल किस को मनाते हो, कहाँ होते हो रईस खान

दिल पे जख्म खाते हैं, जान से गुजरते हैं - Dil pe zakhm khate hain

 दिल पे जख्म खाते हैं, जान से गुजरते हैं जुर्म सिर्फ इतना है, उनको प्यार करते हैं ऐतबार बढ़ता है और भी मुहब्बत का जब वो अजनबी बनकर पास से गुजरते हैं उनकी अंजुमन भी है, दार भी रसन भी है देखना है दीवाने, अब कहाँ ठहरते हैं उनके इक तगाफुल से टूटते हैं दिल कितने उनकी इक तवज्जो से कितने जख्म भरते हैं जो पले हैं ज़ुलमत में, क्या सहर को पहचानें तीरगी के शैदाई रोशनी से डरते हैं लाख वो गुरेजां हों, लाख दुशमन ए जां हों दिल को क्या करें साहिब, हम उन्ही पे मरते हैं Posted by Raees Khan

जब भी कभी खुद को तन्हा करोगी तुम : रईस खान

 जब भी कभी खुद को तन्हा करोगी तुम बस मेरे  ही  बारे  में  सोचा  करोगी  तुम अब  तो  मैं   तुमसे   झगड़ता   भी   नहीं तो क्या अब इस बात पे झगड़ा करोगी तुम 🙄 रईस खान

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फिर कभी सामना हो ना हो हमसफ़र, Phir kabhi samna ho na ho humsafar

 फिर कभी सामना हो ना हो हमसफ़र रात कट जायेगी, कुछ कहो हमसफ़र इस से आगे बड़े ही कठिन मोड़ हैं इस से आगे का तुम सोच लो हमसफ़र हमसफ़र ये बताओ कि तुम भी कभी इश्क में....! खैर छोङो चलो हमसफ़र इस जगह मैंने खोया था इक शख्स को इस जगह मत रुको, मत रुको हमसफ़र Posted by Raees Khan 

जो उसकी आँखों से बयां होते हैं - Jo uski aankhon se byan hote hain

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Posted by Raees Khan   

बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम : ताहिर फराज़ / Tahir Faraz : Bahot khoobsurat ho tum

 बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम हैं फूलों की डाली ये बाँहें तुम्हारी  हैं ख़ामोश जादू निगाहें तुम्हारी है चेहरा तुम्हारा कि दिन है सुनहरा  और इस पर ये काली घटाओं का पहरा  गुलाबों से नाज़ुक महकता बदन है  ये लब हैं तुम्हारे कि खिलता चमन है  बिखेरो जो ज़ुल्फ़ें तो शरमाए बादल  फ़रिश्ते भी देखें तो हो जाएँ पागल  वो पाकीज़ा मूरत हो तुम बहुत ख़ूबसूरत हो तुम  कभी जुगनुओं की क़तारों में ढूंडा  चमकते हुए चांद-तारों में ढूंडा  ख़जाओं में ढूंडा, बहारों में ढूंडा मचलते हुए आबसारों में ढूंडा हक़ीकत में देखा, फंसाने में देखा  न तुम सा हंसी, इस ज़माने देखा न दुनिया की रंगीन महफिल में पाया जो पाया तुम्हें अपना ही दिल में पाया   एक ऐसी मसर्रत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम जो बन के कली मुस्कुराती है अक्सर  शब हिज्र में जो रुलाती है अक्सर  जो लम्हों ही लम्हों में दुनिया बदल दे  जो शाइ'र को दे जाए पहलू ग़ज़ल के  छुपाना जो चाहें छुपाई न जाए  भुलाना जो चाहें भुलाई न जाए  वो पहली मोहब्बत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम  बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम ताहिर फराज़  Posted by Raees Khan

कभी कांटों सी चुभन हुई, कभी फूलों सा एहसास मिला Raees khan

 कभी कांटों सी चुभन हुई, कभी फूलों सा एहसास मिला यादों के उस गुलशन में जीवन का कुछ पल खास मिला तुम किस जमाने की बात करते हो, ये जमाना कब अच्छा था यहाँ गांधी को भी गोली मिली, यहाँ राम को भी वनवास मिला रईस खान Written by : Raees Khan

मेरे बारे में उसको पता ही नहीं Raees Khan's ghazal

 मेरे बारे में उसको पता ही नहीं मैं कभी उस से मिला ही नहीं मुझे अपनी नज़रों से पिलाओ मयकदे के नशे में मज़ा ही नहीं बात ना हो तुम्हारी आँखों की ऐसा शेर तो मैंने लिखा ही नहीं मुझे शिकवा बस इतना है रईस उसको मुझसे कोई शिकवा ही नहीं रईस खान Written by : Raees Khan