बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम : ताहिर फराज़ / Tahir Faraz : Bahot khoobsurat ho tum

 बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम

बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम


हैं फूलों की डाली ये बाँहें तुम्हारी 

हैं ख़ामोश जादू निगाहें तुम्हारी


है चेहरा तुम्हारा कि दिन है सुनहरा

 और इस पर ये काली घटाओं का पहरा 


गुलाबों से नाज़ुक महकता बदन है 

ये लब हैं तुम्हारे कि खिलता चमन है 


बिखेरो जो ज़ुल्फ़ें तो शरमाए बादल 

फ़रिश्ते भी देखें तो हो जाएँ पागल 


वो पाकीज़ा मूरत हो तुम

बहुत ख़ूबसूरत हो तुम 


कभी जुगनुओं की क़तारों में ढूंडा 

चमकते हुए चांद-तारों में ढूंडा 


ख़जाओं में ढूंडा, बहारों में ढूंडा

मचलते हुए आबसारों में ढूंडा


हक़ीकत में देखा, फंसाने में देखा 

न तुम सा हंसी, इस ज़माने देखा


न दुनिया की रंगीन महफिल में पाया

जो पाया तुम्हें अपना ही दिल में पाया

 

एक ऐसी मसर्रत हो तुम

बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम


जो बन के कली मुस्कुराती है अक्सर 

शब हिज्र में जो रुलाती है अक्सर 


जो लम्हों ही लम्हों में दुनिया बदल दे 

जो शाइ'र को दे जाए पहलू ग़ज़ल के 


छुपाना जो चाहें छुपाई न जाए 

भुलाना जो चाहें भुलाई न जाए 


वो पहली मोहब्बत हो तुम

बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम 


बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम


ताहिर फराज़ 


Posted by Raees Khan

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