कहां जिक्र माह ओ अंजुम, कहां रोशनी की बातें

 कहां जिक्र माह ओ अंजुम, कहां रोशनी की बातें

यहां सुबह तक रहेंगी यूं ही तीरगी की बातें


लो वह जाने अंजुम भी सरे बज़्म आन पहुंचा

यहां ज़ेब ए गुफ्तगू थीं अभी आप ही की बातें


तेरी आंख से भी होगी कभी बहस कैफ व मस्ती

तेरी जुल्फ से सुनेंगे कभी बरहमी की बातें


हैं सहीफा ए वफ़ा के यही बाब दो नुमाया

मेरी दोस्ती के किस्से तेरी दुश्मनी की बातें


तेरा हुस्न एक नगमा वही नगमा ए मोहब्बत

मेरे लब पे रक्स करती हुई रोशनी की बातें


मुझे मुझसे छीनने की अभी हर अदा वही है

वही उनका हुस्न सादा वही सादगी की बातें


मेरी दास्तान ए गम पर वह खामोशी बेनयाज़ी

कोई जैसे सुन रहा हो किसी अजनबी की बातें

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