अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम : राजेश रेड्डी / Rajesh Reddy

 अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम

ख़ुद को समेटते हैं यहाँ से वहाँ से हम


क्या जाने किस जहाँ में मिलेगा हमें सुकून

नाराज़ हैं ज़मीं से, ख़फ़ा आसमाँ से हम


अब तो सराब ही से बुझाने लगे हैं प्यास

लेने लगे हैं काम यक़ीं का गुमाँ से हम


लेकिन हमारी आँखों ने कुछ और कह दिया

कुछ और कहते रह गए अपनी ज़बाँ से हम


आईने से उलझता है जब भी हमारा अक्स

हट जाते हैं बचा के नज़र दरमियाँ से हम


मिलते नहीं हैं अपनी कहानी में हम कहीं

गायब हुए हैं जब से तेरी दास्ताँ से हम 


राजेश रेड्डी


Posted : Raees khan


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