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Showing posts from September, 2021

रक़्स करने का मिला हुक्म जो दरियाओं में - رکس کرنے کا ملا حکم جو دریاؤں میں

रक़्स करने का मिला हुक्म जो दरियाओं में हमने खुश होके भंवर बांध लिये पांव में رکس کرنے کا ملا حکم جو دریاؤں میں ہم نے خوش ہوکے بھنور باندھ لئے پاؤں میں ऐ मेरे हमसफरों, तुम भी तो थके हारे हो धूप की तुम तो मिलावट ना करो छांव में اے میرے ہمسفروں، تم بھی تو تھکے ہارے ہو دھوپ کی تم تو ملاوٹ نہ کرو چھاؤں میں जो भी आता है बताता है नया को इलाज फंस ना जाये तेरा बीमार मसीहाओं में جو بھی آتا ہے بتاتا ہے نیا کوئی علاج پھنس نہ جائے تیرا بیمار مسیحاؤں میں वो खुदा है किसी टूटे हुए दिल में होगा मस्जिदों में उसे ढूंढो ना कलीसाओं में وہ خدا ہے کسی ٹوٹے ہوئے دل میں ہوگا مسجدوں میں اسے ڈھوندو نہ کلیساؤں میں हमको आपस में मोहब्बत नहीं करने देते इक यही बात बुरी है इस देश के नेताओं में ہم کو آپس میں محبت نہیں کرنے دیتے اک یہی بات بری ہے اس دیش کے نیتاؤں میں

वो समर था मेरी दुआओं का उसे किसने अपना बना लिया

वो समर था मेरी दुआओं का उसे किसने अपना बना लिया मेरी आँख किसने उजाड़ दी, मेरा ख़्वाब किसने चुरा लिया तुझे क्या बताएँ कि दिल-नशीं तेरे इश्क़ में तेरी याद में कभी गुफ़्तुगू रही फूल से कभी चाँद छत पे बुला लिया वो पहले पहल के इश्क में जो तेरा हाल था मुझे याद है कभी जल गईं तेरी रोटियाँ कभी हाथ तू ने जिला लिया मेरी जंग की वही जीत थी मेरी फ़त्ह का वही जश्न था मैं गिरा तो दौड़ के यार ने मुझे बाज़ुओं में उठा लिया मेरी चाँद छूने की हसरतें, मेरी ख़ुशबू होने की ख़्वाहिशें तू मिला तो दिल को यक़ीं हुआ मुझे जो तलब थी वो पा लिया मेरे दुश्मनों की नज़र में भी मेरा क़द बड़ा ही रहा सदा मेरी माँ की प्यारी दुआओं ने मुझे ज़िल्लतों से बचा लिया मेरी डायरी मेरी शायरी जो पढ़ी तो पढ़ते ही रो पड़ी मेरे पास आ के कहा मुझे ये क्या रोग तू ने लगा लिया

रफाक़त का तेरा दावा सरासर झूठ हो जैसे

 रफाक़त का तेरा दावा सरासर झूठ हो जैसे कोई मन्ज़र ड्रामे का या फिल्मी शूट हो जैसे तेरा ये दोहरापन यूं मेरे जज़्बतों से खेले है किसी खुले मकां पे चोरों की लूट हो जैसे बहोत बरते हुए जज़्बों से दिल उकता गया मेरा मोहब्बत इस तरह फेंकी पुराना सूट हो जैसे सो अब झगड़े का हल तर्क ए तअल्लुक ही निकलता है हमारी जंग दो फिरकों में पड़ती फूट हो जैसे Humari Zaban

अश्आर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं

अश्आर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं कुछ शेर फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं देखूँ तेरे हाथों को तो लगता है तेरे हाथ  मंदिर में फ़क़त दीप जलाने के लिए हैं  ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं

खुद को इतना भी मत बचाया कर

 खुद को इतना भी मत बचाया कर बारिशें हों तो भीग जाया कर चाँद लाकर कोई नहीं देगा अपने चेहरे से जगमगाया कर रूप खिलता है मुस्कुराने से कभी कभी ही सही, मुस्कुराया कर लफ्ज़ आँखों से बयां होने लगते हैं दिल की बातें ना यूँ छुपाया कर

तन-ए-तन्हा मुक़ाबिल हो रहा हूँ मैं हज़ारों से

 तन-ए-तन्हा मुक़ाबिल हो रहा हूँ मैं हज़ारों से  हसीनों से, रक़ीबों से, ग़मों से, ग़म-गुसारों से  उन्हें मैं छीन कर लाया हूँ कितने दावेदारों से  शफ़क़ से, चाँदनी रातों से, फूलों से, सितारों से  हमारे दाग़-ए-दिल ज़ख़्म-ए-जिगर कुछ मिलते-जुलते हैं  गुलों से, गुल-रुख़ों से, मह-वशों से, माह-पारों से  कभी होता नहीं महसूस वो यूँ क़त्ल करते हैं  निगाहों से, कनखियों से, अदाओं से, इशारों से  हमेशा एक प्यासी रूह की आवाज़ आती है  कुओं से, पनघटों से, नदियों से, आबशारों से  न आए पर न आए वो उन्हें क्या क्या ख़बर भेजी  लिफ़ाफ़ों से, ख़तों से, दुख भरे पर्चों से, तारों से  ज़माने में कभी भी क़िस्मतें बदला नहीं करतीं  उमीदों से, भरोसों से, दिलासों से, सहारों से  वो दिन भी हाए क्या दिन थे जब अपना भी तअ'ल्लुक़ था  दशहरे से, दिवाली से, बसंतों से, बहारों से  कभी पत्थर के दिल ऐ क़ैफ  पिघले हैं न पिघलेंगे  मुनाजातों से, फ़रियादों से, चीख़ों से, पुकारों से क़ैफ भोपाली

बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है

Main jise odhta bichhata hun

Main jise odhta bichhata hun Wo ghazal aapko sunata hun Ek jungal hai teri aankhon mein Main jahan raah bhool jata hun Tu kisi rail si guzarti hai Main kisi pul sa thartharata hun Har taraf aitraz hota hai Main agar roshni mein aata hun Main tujhe bhoolne ki koshish mein Aaj kitne qareeb paata hun Dushyant Kumar

कभी उनका नाम लेना , Kabhi unka naam lena

 कभी उन का नाम लेना कभी उन की बात करना मेरा ज़ौक़ उन की चाहत मेरा शौक़ उन पे मरना वो किसी की झील आँखें वो मेरी जुनूँ-मिज़ाजी कभी डूबना उभर कर कभी डूब कर उभरना तेरे मनचलों का जग में ये अजब चलन रहा है न किसी की बात सुनना, न किसी से बात करना शब-ए-ग़म न पूछ कैसे तेरे मुब्तला पे गुज़री कभी आह भर के गिरना कभी गिर के आह भरना वो तेरी गली के तेवर, वो नज़र नज़र पे पहरे वो मेरा किसी बहाने तुझे देखते गुज़रना कहाँ मेरे दिल की हसरत, कहाँ मेरी ना-रसाई कहाँ तेरे गेसुओं का, तेरे दोश पर बिखरना चले लाख चाल दुनिया हो ज़माना लाख दुश्मन जो तेरी पनाह में हो उसे क्या किसी से डरना