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Showing posts from August, 2020

अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी, Awwal awwal ki dosti hai abhi

अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी इक गज़ल है कि हो रही है अभी दिल की दीवानगी है अपनी जगह फिर भी कुछ एहतेयात सी है अभी नज़्दीकियां लाख खूबसूरत हों दूरियो़ में भी दिलकशी है अभी मैं भी छुप छुप के देखता हूँ उसे वो भी मुड़ मुड़ के देखती है अभी Posted by : Raees Khan

Happy Independence Day - India -15th August

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हम बुलबुलें हैं इसकी ये  गुलसितां   हमारा Happy Independence Day India 15th August  

ज़ब्त करके हंसी को भूल गया - Zabt karke hansi ko bhool gya

 ज़ब्त करके हंसी को भूल गया मैं तो उस जख्म ही को भूल गया एक बार दिल की बात मानी थी फिर सारी उम्र हंसी को भूल गया सुबह तक याद रखनी थी जो बात मैं उसे शाम ही को भूल गया सब दलीलें तो मुझको याद रहीं बहस क्या थी, उसी को भूल गया बस्तियों.....! अब तो रास्ता दे दो अब तो मैं उस गली को भूल गया यानी ! तुम वह हो ? वाकई हद है मैं तो सचमुच सभी को भूल गया Posted by : Raees Khan

अब उस का वस्ल महँगा चल रहा है - Ab uska vasl mahanga chal raha hai

 अब उस का वस्ल महँगा चल रहा है तो बस यादों पे ख़र्चा चल रहा है मोहब्बत दो क़दम पर थक गई थी मगर ये हिज्र कितना चल रहा है बहुत ही धीरे धीरे चल रहे हो तुम्हारे ज़ेहन में क्या चल रहा है बस इक ही दोस्त है दुनिया में अपना मगर उस से भी झगड़ा चल रहा है Posted by : Raees Khan

तुम्हारे ग़म से तौबा कर रहा हूँ - Tumhare gham se tauba kar raha hun

 तुम्हारे ग़म से तौबा कर रहा हूँ तअज्जुब है मैं ऐसा कर रहा हूँ बहुत से बंद ताले खुल रहे हैं तेरे सब ख़त इकट्ठा कर रहा हूँ कोई तितली निशाने पर नहीं है मैं बस रंगों का पीछा कर रहा हूँ मैं रस्मन कह रहा हूँ ''फिर मिलेंगे'' ये मत समझो कि वादा कर रहा हूँ Posted by : Raees Khan

एक पहुँचा हुआ मुसाफ़िर है - Ek pahoncha huwa musafir hai

 एक पहुँचा हुआ मुसाफ़िर है दिल भटकने में फिर भी माहिर है कौन लाया है इश्क़ पर ईमाँ मैं भी काफ़िर हूँ तू भी काफ़िर है दर्द का वो जो हर्फ़ ए अव्वल था दर्द का वो ही हर्फ़ ए आख़िर है काम अधूरा पड़ा है ख़्वाबों का आज फिर नींद ग़ैर-हाज़िर है Posted by : Raees Khan

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो - राहत इंदौरी

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  आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो  ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो  राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें  रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो  एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो  दोस्ताना ज़िंदगी से, मौत से यारी रखो  आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में  कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो  ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे  नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो  ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन  दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो  राहत इंदौरी

हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते - Hath khali hai tere shaher se jate jate

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  हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते अब के मायूस हुआ यारों को रुख़्सत कर के जा रहे थे तो कोई ज़ख़्म लगाते जाते रेंगने की भी इजाज़त नहीं हम को वर्ना हम जिधर जाते नए फूल खिलाते जाते मैं तो जलते हुए सहराओं का इक पत्थर था तुम तो दरिया थे मिरी प्यास बुझाते जाते मुझ को रोने का सलीक़ा भी नहीं है शायद लोग हँसते हैं मुझे देख के आते जाते हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते राहत इंदौरी

एक वादा है किसी का जो वफ़ा होता नहीं - Ek vada hai kisi ka jo wafa hota nahin

एक वादा है किसी का जो वफ़ा होता नहीं वर्ना इन तारों भरी रातों में क्या होता नहीं जी में आता है उलट दें उन के चेहरे से नक़ाब हौसला करते हैं लेकिन हौसला होता नहीं शम्अ जिस की आबरू पर जान दे दे झूम कर वो पतंगा जल तो जाता है फ़ना होता नहीं अब तो मुद्दत से रह व रस्म ए नज़ारा बंद है अब तो उन का तूर पर भी सामना होता नहीं हर शनावर को नहीं मिलता तलातुम से ख़िराज हर सफ़ीने का मुहाफ़िज़ नाख़ुदा होता नहीं हर भिकारी पा नहीं सकता मक़ाम-ए-ख़्वाजगी हर कस-ओ-ना-कस को तेरा ग़म अता होता नहीं हाए ये बेगानगी अपनी नहीं मुझ को ख़बर हाए ये आलम कि तू दिल से जुदा होता नहीं बारहा देखा है 'साग़र' रहगुज़ार इश्क़ में कारवाँ के साथ अक्सर रहनुमा होता नहीं Posted by : Raees Khan