ज़ब्त करके हंसी को भूल गया - Zabt karke hansi ko bhool gya

 ज़ब्त करके हंसी को भूल गया

मैं तो उस जख्म ही को भूल गया


एक बार दिल की बात मानी थी

फिर सारी उम्र हंसी को भूल गया


सुबह तक याद रखनी थी जो बात

मैं उसे शाम ही को भूल गया


सब दलीलें तो मुझको याद रहीं

बहस क्या थी, उसी को भूल गया


बस्तियों.....! अब तो रास्ता दे दो

अब तो मैं उस गली को भूल गया


यानी ! तुम वह हो ? वाकई हद है

मैं तो सचमुच सभी को भूल गया


Posted by : Raees Khan

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