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Showing posts from 2021

रक़्स करने का मिला हुक्म जो दरियाओं में - رکس کرنے کا ملا حکم جو دریاؤں میں

रक़्स करने का मिला हुक्म जो दरियाओं में हमने खुश होके भंवर बांध लिये पांव में رکس کرنے کا ملا حکم جو دریاؤں میں ہم نے خوش ہوکے بھنور باندھ لئے پاؤں میں ऐ मेरे हमसफरों, तुम भी तो थके हारे हो धूप की तुम तो मिलावट ना करो छांव में اے میرے ہمسفروں، تم بھی تو تھکے ہارے ہو دھوپ کی تم تو ملاوٹ نہ کرو چھاؤں میں जो भी आता है बताता है नया को इलाज फंस ना जाये तेरा बीमार मसीहाओं में جو بھی آتا ہے بتاتا ہے نیا کوئی علاج پھنس نہ جائے تیرا بیمار مسیحاؤں میں वो खुदा है किसी टूटे हुए दिल में होगा मस्जिदों में उसे ढूंढो ना कलीसाओं में وہ خدا ہے کسی ٹوٹے ہوئے دل میں ہوگا مسجدوں میں اسے ڈھوندو نہ کلیساؤں میں हमको आपस में मोहब्बत नहीं करने देते इक यही बात बुरी है इस देश के नेताओं में ہم کو آپس میں محبت نہیں کرنے دیتے اک یہی بات بری ہے اس دیش کے نیتاؤں میں

वो समर था मेरी दुआओं का उसे किसने अपना बना लिया

वो समर था मेरी दुआओं का उसे किसने अपना बना लिया मेरी आँख किसने उजाड़ दी, मेरा ख़्वाब किसने चुरा लिया तुझे क्या बताएँ कि दिल-नशीं तेरे इश्क़ में तेरी याद में कभी गुफ़्तुगू रही फूल से कभी चाँद छत पे बुला लिया वो पहले पहल के इश्क में जो तेरा हाल था मुझे याद है कभी जल गईं तेरी रोटियाँ कभी हाथ तू ने जिला लिया मेरी जंग की वही जीत थी मेरी फ़त्ह का वही जश्न था मैं गिरा तो दौड़ के यार ने मुझे बाज़ुओं में उठा लिया मेरी चाँद छूने की हसरतें, मेरी ख़ुशबू होने की ख़्वाहिशें तू मिला तो दिल को यक़ीं हुआ मुझे जो तलब थी वो पा लिया मेरे दुश्मनों की नज़र में भी मेरा क़द बड़ा ही रहा सदा मेरी माँ की प्यारी दुआओं ने मुझे ज़िल्लतों से बचा लिया मेरी डायरी मेरी शायरी जो पढ़ी तो पढ़ते ही रो पड़ी मेरे पास आ के कहा मुझे ये क्या रोग तू ने लगा लिया

रफाक़त का तेरा दावा सरासर झूठ हो जैसे

 रफाक़त का तेरा दावा सरासर झूठ हो जैसे कोई मन्ज़र ड्रामे का या फिल्मी शूट हो जैसे तेरा ये दोहरापन यूं मेरे जज़्बतों से खेले है किसी खुले मकां पे चोरों की लूट हो जैसे बहोत बरते हुए जज़्बों से दिल उकता गया मेरा मोहब्बत इस तरह फेंकी पुराना सूट हो जैसे सो अब झगड़े का हल तर्क ए तअल्लुक ही निकलता है हमारी जंग दो फिरकों में पड़ती फूट हो जैसे Humari Zaban

अश्आर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं

अश्आर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं कुछ शेर फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं देखूँ तेरे हाथों को तो लगता है तेरे हाथ  मंदिर में फ़क़त दीप जलाने के लिए हैं  ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं

खुद को इतना भी मत बचाया कर

 खुद को इतना भी मत बचाया कर बारिशें हों तो भीग जाया कर चाँद लाकर कोई नहीं देगा अपने चेहरे से जगमगाया कर रूप खिलता है मुस्कुराने से कभी कभी ही सही, मुस्कुराया कर लफ्ज़ आँखों से बयां होने लगते हैं दिल की बातें ना यूँ छुपाया कर

तन-ए-तन्हा मुक़ाबिल हो रहा हूँ मैं हज़ारों से

 तन-ए-तन्हा मुक़ाबिल हो रहा हूँ मैं हज़ारों से  हसीनों से, रक़ीबों से, ग़मों से, ग़म-गुसारों से  उन्हें मैं छीन कर लाया हूँ कितने दावेदारों से  शफ़क़ से, चाँदनी रातों से, फूलों से, सितारों से  हमारे दाग़-ए-दिल ज़ख़्म-ए-जिगर कुछ मिलते-जुलते हैं  गुलों से, गुल-रुख़ों से, मह-वशों से, माह-पारों से  कभी होता नहीं महसूस वो यूँ क़त्ल करते हैं  निगाहों से, कनखियों से, अदाओं से, इशारों से  हमेशा एक प्यासी रूह की आवाज़ आती है  कुओं से, पनघटों से, नदियों से, आबशारों से  न आए पर न आए वो उन्हें क्या क्या ख़बर भेजी  लिफ़ाफ़ों से, ख़तों से, दुख भरे पर्चों से, तारों से  ज़माने में कभी भी क़िस्मतें बदला नहीं करतीं  उमीदों से, भरोसों से, दिलासों से, सहारों से  वो दिन भी हाए क्या दिन थे जब अपना भी तअ'ल्लुक़ था  दशहरे से, दिवाली से, बसंतों से, बहारों से  कभी पत्थर के दिल ऐ क़ैफ  पिघले हैं न पिघलेंगे  मुनाजातों से, फ़रियादों से, चीख़ों से, पुकारों से क़ैफ भोपाली

बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है

Main jise odhta bichhata hun

Main jise odhta bichhata hun Wo ghazal aapko sunata hun Ek jungal hai teri aankhon mein Main jahan raah bhool jata hun Tu kisi rail si guzarti hai Main kisi pul sa thartharata hun Har taraf aitraz hota hai Main agar roshni mein aata hun Main tujhe bhoolne ki koshish mein Aaj kitne qareeb paata hun Dushyant Kumar

कभी उनका नाम लेना , Kabhi unka naam lena

 कभी उन का नाम लेना कभी उन की बात करना मेरा ज़ौक़ उन की चाहत मेरा शौक़ उन पे मरना वो किसी की झील आँखें वो मेरी जुनूँ-मिज़ाजी कभी डूबना उभर कर कभी डूब कर उभरना तेरे मनचलों का जग में ये अजब चलन रहा है न किसी की बात सुनना, न किसी से बात करना शब-ए-ग़म न पूछ कैसे तेरे मुब्तला पे गुज़री कभी आह भर के गिरना कभी गिर के आह भरना वो तेरी गली के तेवर, वो नज़र नज़र पे पहरे वो मेरा किसी बहाने तुझे देखते गुज़रना कहाँ मेरे दिल की हसरत, कहाँ मेरी ना-रसाई कहाँ तेरे गेसुओं का, तेरे दोश पर बिखरना चले लाख चाल दुनिया हो ज़माना लाख दुश्मन जो तेरी पनाह में हो उसे क्या किसी से डरना

Har koi dil ki hatheli pe hai sahera rakkhe

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भले दिनों की बात है, भली सी एक शक्ल थी - Bhale dino ki baat hai, bhali si ek shakl thi

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भले दिनों की बात है, भली सी एक शक्ल थी न ये कि हुस्न ए ताम हो, न देखने में आम सी न ये कि वो चले तो कहकशाँ सी रहगुज़र लगे मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे कोई भी रुत हो उस की छब, फ़ज़ा का रंग-रूप थी वो गर्मियों की छाँव थी, वो सर्दियों की धूप थी न मुद्दतों जुदा रहे, न साथ सुब्ह-ओ-शाम हो न रिश्ता ए वफ़ा पे ज़िद, न ये कि इज़्न-ए-आम हो न ऐसी ख़ुश-लिबासियाँ, कि सादगी गिला करे न इतनी बे-तकल्लुफ़ी, कि आइना हया करे न इख़्तिलात में वो रम, कि बद-मज़ा हों ख़्वाहिशें  न इस क़दर सुपुर्दगी, कि ज़च करें नवाज़िशें  न आशिक़ी जुनून की, कि ज़िंदगी अज़ाब हो  न इस क़दर कठोर-पन, कि दोस्ती ख़राब हो  कभी तो बात भी ख़फ़ी, कभी सुकूत भी सुख़न कभी तो किश्त ए ज़ाफ़राँ, कभी उदासियों का बन सुना है एक उम्र है, मुआमलात-ए-दिल की भी विसाल ए जाँ-फ़ज़ा तो क्या, फ़िराक़ ए जाँ-गुसिल की भी  सो एक रोज़ क्या हुआ, वफ़ा पे बहस छिड़ गई  मैं इश्क़ को अमर कहूँ, वो मेरी ज़िद से चिड़ गई  मैं इश्क़ का असीर था, वो इश्क़ को क़फ़स कहे  कि उम्र भर के साथ को, वो बदतरज़ हवस कहे  शजर हजर नहीं कि हम, हमेशा पा बा गिल रहें  ना ढोर हैं कि रस

तूने सीने को जब तक खलिश दी ना थी

 तूने सीने को जब तक खलिश दी ना थी तूने जज़्बों को जब तक उभारा ना था मैं वो दरिया था जिसमें की लहरें ना थीं मैं वो कलज़म था जिसमें की धारा ना था साज़ फरियाद के दिल ने छेड़े ना थे मिलने-बिछड़ने के ये बखेड़े ना थे हमने सीने के ज़ख़्म उधेड़े ना थे तुमने ज़ुल्फों को अपनी संवारा ना था तुझमें दरिया कोई किस सहारे चले मैं जो पश्चिम तू पूरब के धारे चले मेरे कश्ती किनारे-किनारे चले तेरी मौज़ों को ये भी गवारा ना था देख परवाने के रक्स ए बेताब को शमआ आने ना दे आँख में ख्वाब को एक हिचकी सी आयी थी महताब को आँख खोली तो कोई सितारा ना था सारे अफसाना ए इश्क इसी महफिल के थे क़ैस सहरा का था, रांझा जंगल के थे हम भी गुलाम अपने ही दिल के थे हम दीवानों का कोई सहारा ना था

हुस्न माइल बा सितम हो, तो ग़ज़ल होती है

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जिसकी झंकार से दिल को आराम था, वो तेरा नाम था

 जिस की झंकार में दिल को आराम था, वो तेरा नाम था मेरे होठों पर रक्सां जो एक नाम था, वो तेरा नाम था तोहमतें मुझ पर आती रही हैं कई, एक से इक नई खूबसूरत मगर जो इक इल्जाम था, वो तेरा नाम था दोस्त जितने थे ना आशना हो गए, पारसा हो गए साथ मेरे जो रुसवा सरेआम था,वो तेरा नाम था सुबह से शाम तक जो मेरे पास थी, वो तेरी आस थी शाम के बाद जो दिल का पैगाम था, वो तेरा नाम था मुझ पर किस्मत रही हमेशा मेहरबां, दे दिया सारा जहां पर जो सबसे बड़ा एक ईनाम था, वो तेरा नाम था

अब के तज्दीद ए वफा का - Ab ke tajdeed wafa ka

 अब के तजदीद ए वफ़ा का नहीं इम्कां जानां याद क्या तुझको दिलायें तेरा पैमां जानां  यूँ ही मौसम की अदा देख के याद आया है  किस क़दर जल्द बदल जाते हैं इंसां जानां ज़िंदगी तेरी अता थी सो तेरे नाम की है  हमने जैसे भी बसर की तेरा एहसां जानां  दिल ये कहता है कि शायद है फ़सुर्दा तू भी  दिल की क्या बात करें दिल तो है नादां जानां  अव्वल अव्वल की मोहब्बत के नशे याद तो कर  बे पिये भी तेरा चेहरा था गुलिस्ताँ जानां  आख़िर आख़िर तो ये आलम है कि अब होश नहीं  रग ए मीना सुलग उट्ठी कि रग ए जां जानाँ  मुद्दतों से यही आलम न तवक़्क़ो न उमीद  दिल पुकारे ही चला जाता है जानां-जानां अब तेरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आये  और से और हुए दर्द के उनवाँ जानां हम कि रूठी हुई रुत को भी मना लेते थे  हमने देखा ही न था मौसम ए हिज्राँ जानां  होश आया तो सभी ख़्वाब थे रेज़ा-रेज़ा  जैसे उड़ते हुए औराक़ ए परेशां जानां #HumariZaban

ज़ख़्म ए उम्मीद भर गया कब का زخم امید بھر گیا کب کا

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मैंने इस तौर से चाहा तुझे अक्सर जानाँ - Maine is taur se chaha tujhe aksar jaana

 मैंने इस तौर से चाहा तुझे अक्सर जानाँ जैसे महताब को बे-अंत समंदर चाहे जैसे सूरज की किरण सीप के दिल में उतरे जैसे खुशबू को हवा रंग से हटकर चाहे जैसे गूंचे खिले मौसम से हिना मांगते हैं जैसे परवाने शम्मा से वफा मांगते हैं जैसे ख्वाबों में ख्यालों की कमां टूटती है जैसे बारिश की दुआ आबला-पा मांगते हैं मेरा हर ख्वाब मेरे सच की गवाही देगा वुस्अत ए दीद ने तुझसे तेरी ख्वाहिश की है मेरी सोचों में कभी देख सरापा अपना मैंने दुनियां से अलग तेरी परस्तिश की है मैंने चाहा कि तेरे हुस्न की गुलनार फ़िज़ा मेरी ग़ज़लों की क़तारों से दहकती जाये मैंने चाहा कि मेरे दिल से गुलिस्तां की बहार तेरी आँखों के गुलाबों से महकती जाये तय तो ये था कि सजाता रहे लफ्ज़ों का कंवल मेरे खामोश ख़्यालों में तकल्लुम तेरा रक्स करता रहे फिरता रहे खुशबू का खुमार मेरी ख्वाहिश के जज़ीरों में तबस्सुम तेरा तू मगर अजनबी माहोल की पावरदा किरण मेरी बुझती हुई रातों को सहर कर ना सकी तेरी आँखों में मसीहाई थी लेकिन तू भी इक नज़र डाल के ज़ख़्म ए दिल भर ना सकी तुझको एहसास भी है कि किसी दर्द का दाग आँख से दिल में उतर जाये तो क्या होता है ? तु कि

उसी तरह से हर इक ज़ख्म खुशनुमा देखे - परवीन शाकिर

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अगर बज़्म ए हस्ती में औरत ना होती

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ये सफर है हसरतों का इसे ना-तमाम रखना

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कभी उनका नाम लेना कभी उनकी बात करना

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खत के छोटे से तराशे में नहीं आयेंगे

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Tu bhi humein na mil saka

 तू भी हमें ना मिल सका, उम्र भी रायगां गई तुझसे तो खैर इश्क था, खुद से बड़े गिले रहे   

Mohabbat mein nahin hai fark

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Koi chaand rakh meri shaam par

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Kuchh log safar ke liye

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Aap ab poochhne ko aaye hain

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Dil meri jaan mar gya kab ka  

Ab umr, na mausam, na wo raste

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Uske honthon par baith kar tittli

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Kameene ho gye jazbe

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Ye jo raat mein jaaga karte hain , Raees Khan

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Chaand, tittli shayari

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Kis shabahat ke liye aaya hai darwaze pe chaand

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मोहब्बत हो चुकी पूरी محبت ہو چکی پوری

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रास्ते अच्छे लगे, हमसफ़र अच्छा लगा

रास्ते  अच्छे  लगे,   हमसफ़र  अच्छा   लगा मंज़िलों को छोड़िये  हमें सफर  अच्छा लगा एक वो  उम्र थी  जिस पे  कि लानत  भेजिये एक वो लम्हा भी था जो उम्र भर अच्छा लगा रईस खान #HumariZaban

दिल धड़कने का सबब याद आया

 दिल धड़कने का सबब याद आया वो तेरी याद थी अब याद आया

ये जो रात में जागा करते हैं

 ये जो रात में जागा करते हैं हम नींद से धोखा करते हैं कभी चाँद से कभी जुगनू से हम तेरी ही चर्चा करते हैं तन्हाई के हर आलम में बस तुझको सोचा करते हैं इक हकीकत से अंजान बने इक ख्वाब का पीछा करते हैं रईस खान

कुछ इश्क था कुछ मज़बूरी थी

कुछ इश्क़ था कुछ मजबूरी थी,  सो मैं ने जीवन वार दिया मैं  कैसा ज़िंदा आदमी था,  इक शख़्स ने मुझ को मार दिया इक सब्ज़ शाख़ गुलाब की थी,  इक दुनिया अपने ख़्वाब की थी वो एक बहार जो आई नहीं,  उस के लिए सब कुछ हार दिया ये सजा-सजाया घर साथी,  मेरी ज़ात नहीं,  मेरा हाल नहीं ऐ काश कभी तुम जान सको इस सुख ने जो  आज़ार दिया मैं खुली हुई इक सच्चाई,  मुझे जानने वाले जानते हैं मैं ने किन लोगों से नफ़रत की,  और किन लोगों को प्यार दिया