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Showing posts from 2020

अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम : राजेश रेड्डी / Rajesh Reddy

 अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम ख़ुद को समेटते हैं यहाँ से वहाँ से हम क्या जाने किस जहाँ में मिलेगा हमें सुकून नाराज़ हैं ज़मीं से, ख़फ़ा आसमाँ से हम अब तो सराब ही से बुझाने लगे हैं प्यास लेने लगे हैं काम यक़ीं का गुमाँ से हम लेकिन हमारी आँखों ने कुछ और कह दिया कुछ और कहते रह गए अपनी ज़बाँ से हम आईने से उलझता है जब भी हमारा अक्स हट जाते हैं बचा के नज़र दरमियाँ से हम मिलते नहीं हैं अपनी कहानी में हम कहीं गायब हुए हैं जब से तेरी दास्ताँ से हम  राजेश रेड्डी Posted : Raees khan

फ़क़ीर बन कर तुम उनके दर पर - इब्ने इंशा / ibn e insha

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Ibn e insha फ़क़ीर बन कर तुम उनके दर पर हज़ार धूनि रमा के बैठो जबीं के लिक्खे को क्या करोगे, जबीं का लिक्खा मिटा के देखो ऐ उनकी महफ़िल में आने वालों, ऐ सूदो सौदा बताने वालों जो उनकी महफ़िल में आ के बैठो, तो सारी दुनिया भुला के बैठो बहुत जताते हो चाह हमसे, मगर करोगे निबाह हमसे ज़रा मिलाओ निगाह हमसे, हमारे पहलू में आके बैठो जुनूं पुराना है आशिक़ों का, जो यह बहाना है आशिक़ों का वो इक ठिकाना है आशिक़ों का, हुज़ूर जंगल में जा के बैठो हमें दिखाओ न जर्द चेहरा, लिए यह वहशत की गर्द चेहरा रहेगा तस्वीर-ए-दर्द चेहरा, जो रोग ऐसे लगा के बैठो जनाब-ए-इंशा ये आशिक़ी है, जनाब-ए-इंशा ये ज़िंदगी है जनाब-ए-इंशा जो है यही है, न इससे दामन छुड़ा के बैठो इब्ने इंशा

कहां जिक्र माह ओ अंजुम, कहां रोशनी की बातें

 कहां जिक्र माह ओ अंजुम, कहां रोशनी की बातें यहां सुबह तक रहेंगी यूं ही तीरगी की बातें लो वह जाने अंजुम भी सरे बज़्म आन पहुंचा यहां ज़ेब ए गुफ्तगू थीं अभी आप ही की बातें तेरी आंख से भी होगी कभी बहस कैफ व मस्ती तेरी जुल्फ से सुनेंगे कभी बरहमी की बातें हैं सहीफा ए वफ़ा के यही बाब दो नुमाया मेरी दोस्ती के किस्से तेरी दुश्मनी की बातें तेरा हुस्न एक नगमा वही नगमा ए मोहब्बत मेरे लब पे रक्स करती हुई रोशनी की बातें मुझे मुझसे छीनने की अभी हर अदा वही है वही उनका हुस्न सादा वही सादगी की बातें मेरी दास्तान ए गम पर वह खामोशी बेनयाज़ी कोई जैसे सुन रहा हो किसी अजनबी की बातें

मेरे चारहगर मेरे पास आ

मेरे चारहगर मेरे पास आ मेरे दर्द की दे कोई दवा मेरे आँखों में कोई ख्वाब दे मेरे रतजगे का हिसाब दे इक चाँद रख मेरी शाम पर मेरा दिल जले तेरे नाम पर तुझे गर मिले कभी फुरसतें मुझे हैं बहोत सी शिकायतें पर मुझे और कोई गिला नहीं सिवा इसके कि तू मिला नहीं रईस खान

कहाँ होते हो Kahan hote ho

कहाँ होते हो....  ख्वाब आँखों में बसाते हो, कहाँ होते हो रात भर मुझको जगाते हो, कहाँ होते हो एक अरसे से मुसलसल मुझे तन्हा करके किसकी महफिल को सजाते हो, कहाँ होते हो राह तकती है निगाहें रात के आखिर पहर तक लौट कर क्यों नहीं आते हो, कहाँ होते हो याद आती है तुम्हारी वो रूठ जाने की अदा आज कल किस को मनाते हो, कहाँ होते हो रईस खान

दिल पे जख्म खाते हैं, जान से गुजरते हैं - Dil pe zakhm khate hain

 दिल पे जख्म खाते हैं, जान से गुजरते हैं जुर्म सिर्फ इतना है, उनको प्यार करते हैं ऐतबार बढ़ता है और भी मुहब्बत का जब वो अजनबी बनकर पास से गुजरते हैं उनकी अंजुमन भी है, दार भी रसन भी है देखना है दीवाने, अब कहाँ ठहरते हैं उनके इक तगाफुल से टूटते हैं दिल कितने उनकी इक तवज्जो से कितने जख्म भरते हैं जो पले हैं ज़ुलमत में, क्या सहर को पहचानें तीरगी के शैदाई रोशनी से डरते हैं लाख वो गुरेजां हों, लाख दुशमन ए जां हों दिल को क्या करें साहिब, हम उन्ही पे मरते हैं Posted by Raees Khan

जब भी कभी खुद को तन्हा करोगी तुम : रईस खान

 जब भी कभी खुद को तन्हा करोगी तुम बस मेरे  ही  बारे  में  सोचा  करोगी  तुम अब  तो  मैं   तुमसे   झगड़ता   भी   नहीं तो क्या अब इस बात पे झगड़ा करोगी तुम 🙄 रईस खान

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फिर कभी सामना हो ना हो हमसफ़र, Phir kabhi samna ho na ho humsafar

 फिर कभी सामना हो ना हो हमसफ़र रात कट जायेगी, कुछ कहो हमसफ़र इस से आगे बड़े ही कठिन मोड़ हैं इस से आगे का तुम सोच लो हमसफ़र हमसफ़र ये बताओ कि तुम भी कभी इश्क में....! खैर छोङो चलो हमसफ़र इस जगह मैंने खोया था इक शख्स को इस जगह मत रुको, मत रुको हमसफ़र Posted by Raees Khan 

जो उसकी आँखों से बयां होते हैं - Jo uski aankhon se byan hote hain

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Posted by Raees Khan   

बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम : ताहिर फराज़ / Tahir Faraz : Bahot khoobsurat ho tum

 बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम हैं फूलों की डाली ये बाँहें तुम्हारी  हैं ख़ामोश जादू निगाहें तुम्हारी है चेहरा तुम्हारा कि दिन है सुनहरा  और इस पर ये काली घटाओं का पहरा  गुलाबों से नाज़ुक महकता बदन है  ये लब हैं तुम्हारे कि खिलता चमन है  बिखेरो जो ज़ुल्फ़ें तो शरमाए बादल  फ़रिश्ते भी देखें तो हो जाएँ पागल  वो पाकीज़ा मूरत हो तुम बहुत ख़ूबसूरत हो तुम  कभी जुगनुओं की क़तारों में ढूंडा  चमकते हुए चांद-तारों में ढूंडा  ख़जाओं में ढूंडा, बहारों में ढूंडा मचलते हुए आबसारों में ढूंडा हक़ीकत में देखा, फंसाने में देखा  न तुम सा हंसी, इस ज़माने देखा न दुनिया की रंगीन महफिल में पाया जो पाया तुम्हें अपना ही दिल में पाया   एक ऐसी मसर्रत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम जो बन के कली मुस्कुराती है अक्सर  शब हिज्र में जो रुलाती है अक्सर  जो लम्हों ही लम्हों में दुनिया बदल दे  जो शाइ'र को दे जाए पहलू ग़ज़ल के  छुपाना जो चाहें छुपाई न जाए  भुलाना जो चाहें भुलाई न जाए  वो पहली मोहब्बत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम  बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम ताहिर फराज़  Posted by Raees Khan

कभी कांटों सी चुभन हुई, कभी फूलों सा एहसास मिला Raees khan

 कभी कांटों सी चुभन हुई, कभी फूलों सा एहसास मिला यादों के उस गुलशन में जीवन का कुछ पल खास मिला तुम किस जमाने की बात करते हो, ये जमाना कब अच्छा था यहाँ गांधी को भी गोली मिली, यहाँ राम को भी वनवास मिला रईस खान Written by : Raees Khan

मेरे बारे में उसको पता ही नहीं Raees Khan's ghazal

 मेरे बारे में उसको पता ही नहीं मैं कभी उस से मिला ही नहीं मुझे अपनी नज़रों से पिलाओ मयकदे के नशे में मज़ा ही नहीं बात ना हो तुम्हारी आँखों की ऐसा शेर तो मैंने लिखा ही नहीं मुझे शिकवा बस इतना है रईस उसको मुझसे कोई शिकवा ही नहीं रईस खान Written by : Raees Khan

अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी, Awwal awwal ki dosti hai abhi

अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी इक गज़ल है कि हो रही है अभी दिल की दीवानगी है अपनी जगह फिर भी कुछ एहतेयात सी है अभी नज़्दीकियां लाख खूबसूरत हों दूरियो़ में भी दिलकशी है अभी मैं भी छुप छुप के देखता हूँ उसे वो भी मुड़ मुड़ के देखती है अभी Posted by : Raees Khan

Happy Independence Day - India -15th August

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हम बुलबुलें हैं इसकी ये  गुलसितां   हमारा Happy Independence Day India 15th August  

ज़ब्त करके हंसी को भूल गया - Zabt karke hansi ko bhool gya

 ज़ब्त करके हंसी को भूल गया मैं तो उस जख्म ही को भूल गया एक बार दिल की बात मानी थी फिर सारी उम्र हंसी को भूल गया सुबह तक याद रखनी थी जो बात मैं उसे शाम ही को भूल गया सब दलीलें तो मुझको याद रहीं बहस क्या थी, उसी को भूल गया बस्तियों.....! अब तो रास्ता दे दो अब तो मैं उस गली को भूल गया यानी ! तुम वह हो ? वाकई हद है मैं तो सचमुच सभी को भूल गया Posted by : Raees Khan

अब उस का वस्ल महँगा चल रहा है - Ab uska vasl mahanga chal raha hai

 अब उस का वस्ल महँगा चल रहा है तो बस यादों पे ख़र्चा चल रहा है मोहब्बत दो क़दम पर थक गई थी मगर ये हिज्र कितना चल रहा है बहुत ही धीरे धीरे चल रहे हो तुम्हारे ज़ेहन में क्या चल रहा है बस इक ही दोस्त है दुनिया में अपना मगर उस से भी झगड़ा चल रहा है Posted by : Raees Khan

तुम्हारे ग़म से तौबा कर रहा हूँ - Tumhare gham se tauba kar raha hun

 तुम्हारे ग़म से तौबा कर रहा हूँ तअज्जुब है मैं ऐसा कर रहा हूँ बहुत से बंद ताले खुल रहे हैं तेरे सब ख़त इकट्ठा कर रहा हूँ कोई तितली निशाने पर नहीं है मैं बस रंगों का पीछा कर रहा हूँ मैं रस्मन कह रहा हूँ ''फिर मिलेंगे'' ये मत समझो कि वादा कर रहा हूँ Posted by : Raees Khan

एक पहुँचा हुआ मुसाफ़िर है - Ek pahoncha huwa musafir hai

 एक पहुँचा हुआ मुसाफ़िर है दिल भटकने में फिर भी माहिर है कौन लाया है इश्क़ पर ईमाँ मैं भी काफ़िर हूँ तू भी काफ़िर है दर्द का वो जो हर्फ़ ए अव्वल था दर्द का वो ही हर्फ़ ए आख़िर है काम अधूरा पड़ा है ख़्वाबों का आज फिर नींद ग़ैर-हाज़िर है Posted by : Raees Khan

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो - राहत इंदौरी

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  आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो  ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो  राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें  रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो  एक ही नदी के हैं ये दो किनारे दोस्तो  दोस्ताना ज़िंदगी से, मौत से यारी रखो  आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में  कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो  ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे  नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो  ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन  दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो  राहत इंदौरी

हाथ ख़ाली हैं तिरे शहर से जाते जाते - Hath khali hai tere shaher se jate jate

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  हाथ ख़ाली हैं तेरे शहर से जाते जाते जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते जाते अब के मायूस हुआ यारों को रुख़्सत कर के जा रहे थे तो कोई ज़ख़्म लगाते जाते रेंगने की भी इजाज़त नहीं हम को वर्ना हम जिधर जाते नए फूल खिलाते जाते मैं तो जलते हुए सहराओं का इक पत्थर था तुम तो दरिया थे मिरी प्यास बुझाते जाते मुझ को रोने का सलीक़ा भी नहीं है शायद लोग हँसते हैं मुझे देख के आते जाते हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते राहत इंदौरी

एक वादा है किसी का जो वफ़ा होता नहीं - Ek vada hai kisi ka jo wafa hota nahin

एक वादा है किसी का जो वफ़ा होता नहीं वर्ना इन तारों भरी रातों में क्या होता नहीं जी में आता है उलट दें उन के चेहरे से नक़ाब हौसला करते हैं लेकिन हौसला होता नहीं शम्अ जिस की आबरू पर जान दे दे झूम कर वो पतंगा जल तो जाता है फ़ना होता नहीं अब तो मुद्दत से रह व रस्म ए नज़ारा बंद है अब तो उन का तूर पर भी सामना होता नहीं हर शनावर को नहीं मिलता तलातुम से ख़िराज हर सफ़ीने का मुहाफ़िज़ नाख़ुदा होता नहीं हर भिकारी पा नहीं सकता मक़ाम-ए-ख़्वाजगी हर कस-ओ-ना-कस को तेरा ग़म अता होता नहीं हाए ये बेगानगी अपनी नहीं मुझ को ख़बर हाए ये आलम कि तू दिल से जुदा होता नहीं बारहा देखा है 'साग़र' रहगुज़ार इश्क़ में कारवाँ के साथ अक्सर रहनुमा होता नहीं Posted by : Raees Khan