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Showing posts from August, 2019

Kis darja haseen tha mere mahaol ka gham bhi

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Kis darja haseen tha mere mahaol ka gham bhi Main bhool gya aapke andaz e sitam bhi Uljhe huye lamhat ke taareek e safar mein Aaye hain bahot yaad teri zulf ke kham bhi Ik lamha to dam lene de aaghosh e sukoon mein Aie gardish e halat kisi mod pe tham bhi Palkon pe sajaye huye zakhmon ke nageene Guzrenge kisi roz tere shaher se hum bhi Manzar to zara dekhiye ruswai e fan ka Bikne lage bazar mein arbaab qalam  bhi

अभी इस तरफ ना निगाह कर - Abhi is taraf na nigah kar

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अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ मेरा लफ़्ज़ लफ़्ज़ हो आईना तुझे आइने में उतार लूँ मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब का जगा हुआ ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ अगर आसमाँ की नुमाइशों में मुझे भी इज़्न-ए-क़याम हो तो मैं  सितारों की दुकान से तेरी बालियाँ तेरे हार लूँ कई अजनबी तेरी राह में मेरे पास से यूँ गुज़र गए जिन्हें देख कर ये तड़प हुई  तेरा   नाम   लेकर   पुकार   लूं Posted by : Raees Khan

ऐ मेरे हमनशीं चल कहीं और चल - Aie mere humnasheen

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___________♡__________ ऐ मेरे हमनशीं चल कहीं और चल इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं बात होती गुलों तक तो सह लेते हम अब तो काँटों पे भी ,हक़ हमारा नहीं ___________♡___________ दी सदा दार पर और कभी तूर पर किस जगह मैने तुमको पुकारा नहीं ठोकरें यूं खिलाने से क्या फायदा साफ़ कहदो की मिलना गवारा नहीं ___________♡___________ गुलसितां को लहू की जरुरत पड़ी सबसे पहले ही गरदन हमारी कटी फिर भी कहते हैं मुझसे ये अहले चमन ये चमन है हमारा ,तुम्हारा नहीं ___________♡___________ जालिमों अपनी किस्मत पर नाजां न हो दौर बदलेगा ये वक़्त की बात है वो यकीनन सुनेगा सदायें मेरी क्या खुदा है तुम्हारा ,हमारा नहीं ___________♡___________ अपने रूख़ से पर्दा हटा दीजिए मेरा ज़ौक ए नज़र आजमा लीजिए आज निकला हूँ घर से यही सोच कर या तो नज़रें नहीं या ! नज़ार नहीं ___________♡___________ ☆ Posted by : Raees Khan ☆

वो तो खुशबू है हवाओं में बिखर जायेगा - Wo to khushbu hai hawaon me ....

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वो तो खुशबू है हवाओं में बिखर जायेगा मसअला फूल का है ! फूल किधर जायेगा Wo to khushbu hai hawaon mein bikhar jayega Mas'ala phool ka hai ! Phool kidhar jayega Posted by : Raees Khan

उसकी आँखें हैं कि इक डूबने वाला इंसान - Uski aankhen hain ki ik doobne wala insan

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शम्-ए-तन्हा की तरह सुब्ह के तारे जैसे शहर में एक ही दो होंगे हमारे जैसे उसकी आँखें हैं कि इक डूबने वाला इंसान दूसरे डूबने वाले को पुकारे जैसे Posted by : Raees Khan

Masjiden hain namaziyon ke liye - मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिए ( Masjid Quba Picture )

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Masjiden hain namaziyon ke liye Apne ghar mein kahin khuda rakhna मस्जिदें हैं नमाज़ियों के लिए अपने घर में कहीं ख़ुदा रखना Posted by : Raees Khan

अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी - Awwal awwal ki dosti hai abhi

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अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी इक गज़ल है कि हो रही है अभी मैं भी शहर ए वफा में हुँ नया नया वो भी रुक रुक के चल रही है अभी दिल की दीवानगी है अपनी जगह फिर भी कुछ एहतेयात सी है अभी नज़्दीकियां लाख खूबसूरत हों दूरियो़ में भी दिलकशी है अभी मैं भी छुप छुप के देखता हूँ उसे वो भी मुड़ मुड़ के देखती है अभी Posted by : Raees Khan

कितना दुशवार है जज़्बों की तिज़ारत करना - Kitna dushwar hai...

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 कितना दुशवार है जज़्बों की तिज़ारत करना एक ही शख्स से दो बार मोहब्बत करना जिसको तुम चाहो कोई और ना चाहे उसको इसको कहते हैं मोहब्बत में सियासत करना Posted by : Raees Khan

जिक्र जब छिङ गया कयामत का ذکر جب چھڑ گیا قیامت کا

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जिक्र जब छिङ गया कयामत का बात पहुंची तेरी जवानी तक Posted by : Raees Khan

हुस्न क्या चीज़ है - Husn kya cheez hai

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हुस्न क्या चीज़ है वक़्त के सामने तु कयामत सही ! ता कयामत नहीं Husn kya cheez hai waqt ke saamne Tu qyamat sahi ! Ta qyamat nahin Posted by : Raees Khan

निर्मला - १२

अध्याय क्रमांक १         २          ३          ४          ५            ६              ७               ८          ९  १०        ११        १२ निर्मला १२ मुंशीजी पांच बजे कचहरी से लौटे और अन्दर आकर चारपाई पर गिर पड़े। बुढ़ापे की देह, उस पर आज सारे दिन भोजन न मिला। मुंह सूख गया। निर्मला समझ गयी, आज दिन खाली गयां निर्मला ने पूछा- आज कुछ न मिला। मुंशीजी- सारा दिन दौड़ते गुजरा, पर हाथ कुछ न लगा। निर्मला- फौजदारी वाले मामले में क्या हुआ? मुंशीजी- मेरे मुवक्किल को सजा हो गयी। निर्मला- पंडित वाले मुकदमे में? मुंशीजी- पंडित पर डिग्री हो गयी। निर्मला- आप तो कहते थे, दावा खरिज हो जाएेगा। मुंशीजी- कहता तो था, और जब भी कहता हूं कि दावा खारिज हो जाना चाहिए था, मगर उतना सिर मगजन कौन करे? निर्मला- और सीरवाले दावे में? मुंशीजी- उसमें भी हार हो गयी। निर्मला- तो आज आप किसी अभागे का मुंह देखकर उठे थे। मुंशीजी से अब काम बिलकुल न हो सकता थां एक तो उसके पास मुकदमे आते ही न थे और जो आते भी थे, वह बिगड़ जाते थे। मगर अपनी असफलताओं को वह निर्मला से छिपाते रहते थे। जिस दिन

निर्मला - ११

अध्याय क्रमांक १         २          ३          ४          ५            ६              ७               ८          ९  १०        ११        १२ निर्मला ११ रुक्मिणी ने निर्मला से त्यौरियां बदलकर कहा- क्या नंगे पांव ही मदरसे जाएेगा? निर्मला ने बच्ची के बाल गूंथते हुए कहा- मैं क्या करुं? मेरे पास रुपये नहीं हैं। रुक्मिणी- गहने बनवाने को रुपये जुड़ते हैं, लड़के के जूतों के लिए रुपयों में आग लग जाती है। दो तो चले ही गये, क्या तीसरे को भी रुला-रुलाकर मार डालने का इरादा है? निर्मला ने एक सांस खींचकर कहा- जिसको जीना है, जियेगा, जिसको मरना है, मरेगा। मैं किसी को मारने-जिलाने नहीं जाती। आजकल एक-न-एक बात पर निर्मला और रुक्मिणी में रोज ही झड़प हो जाती थी। जब से गहने चोरी गये हैं, निर्मला का स्वभाव बिलकुल बदल गया है। वह एक-एक कौड़ी दांत से पकड़ने लगी है। सियाराम रोते-रोते चहे जान दे दे, मगर उसे मिठाई के लिए पैसे नहीं मिलते और यह बर्ताव कुछ सियाराम ही के साथ नहीं है, निर्मला स्वयं अपनी जरुरतों को टालती रहती है। धोती जब तक फटकनर तार-तार न हो जाएे, नयी धोती नहीं आती। महीनों सिर क