हर घड़ी क़यामत थी ये न पूछ कब गुज़री - Har ghadi qyamat thi
तेरे ग़म की ख़ुश्बू से जिस्म ओ जाँ महक उट्ठे
साँस की हवा जब भी छू के मेरे लब गुज़री
एक साथ रह कर भी दूर ही रहे हम तुम
धूप और छाँव की दोस्ती अजब गुज़री
वक़्त बे-तरह बीता उम्र बे-सबब गुज़री
Posted by : Raees Khan
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