हर घड़ी क़यामत थी ये न पूछ कब गुज़री - Har ghadi qyamat thi

हर घड़ी क़यामत थी ये पूछ कब गुज़री
बस यही ग़नीमत है तेरे बाद शब गुज़री
तेरे ग़म की ख़ुश्बू से जिस्म जाँ महक उट्ठे
साँस की हवा जब भी छू के मेरे लब गुज़री
एक साथ रह कर भी दूर ही रहे हम तुम
धूप और छाँव की दोस्ती अजब गुज़री
जाने क्या हुआ हम को अब के फ़स्ल-ए-गुल में भी
बर्ग-ए-दिल नहीं लरज़ा तेरी याद जब गुज़री

बाद तर्क-ए-उल्फ़त भी यूँ तो हम जिए लेकिन
वक़्त बे-तरह बीता उम्र बे-सबब गुज़री

Posted by : Raees Khan

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