ऐ मेरे हमनशीं चल कहीं और चल - Aie mere humnasheen
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ऐ मेरे हमनशीं चल कहीं और चल
इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं
बात होती गुलों तक तो सह लेते हम
अब तो काँटों पे भी ,हक़ हमारा नहीं
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दी सदा दार पर और कभी तूर पर
किस जगह मैने तुमको पुकारा नहीं
ठोकरें यूं खिलाने से क्या फायदा
साफ़ कहदो की मिलना गवारा नहीं
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गुलसितां को लहू की जरुरत पड़ी
सबसे पहले ही गरदन हमारी कटी
फिर भी कहते हैं मुझसे ये अहले चमन
ये चमन है हमारा ,तुम्हारा नहीं
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जालिमों अपनी किस्मत पर नाजां न हो
दौर बदलेगा ये वक़्त की बात है
वो यकीनन सुनेगा सदायें मेरी
क्या खुदा है तुम्हारा ,हमारा नहीं
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अपने रूख़ से पर्दा हटा दीजिए
मेरा ज़ौक ए नज़र आजमा लीजिए
आज निकला हूँ घर से यही सोच कर
या तो नज़रें नहीं या ! नज़ार नहीं
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☆ Posted by : Raees Khan ☆
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