ऐसा लगता है ज़िन्दगी हो तुम
गज़ल
ऐसा लगता है ज़िन्दगी हो तुम
अजनबी.. कैसे अजनबी हो तुम
अब कोई आरज़ू नहीं बाकी
जुस्तजू मेरी आख़िरी हो तुम
मैं ज़मीं पर घना अँधेरा हूँ
आसमानों की चांदनी हो तुम
दोस्तों से वफ़ा की उम्मीदें ?
किस ज़माने के आदमी हो तुम
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