आँसुओं की जहाँ पायमाली रही

गज़ल

आँसुओं की जहाँ पायमाली रही
ऐसी बस्ती चराग़ों से ख़ाली रही


दुश्मनों की तरह उस से लड़ते रहे
अपनी चाहत भी कितनी निराली रही


जब कभी भी तुम्हारा ख़याल आ गया
फिर कई रोज़ तक बेख़याली रही


लब तरसते रहे इक हँसी के लिये
मेरी कश्ती मुसाफ़िर से ख़ाली रही


चाँद तारे सभी हम-सफ़र थे मगर
ज़िन्दगी रात थी, रात काली रही


Posted by : Raees Khan

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