कल चौदहवीं की रात थी (With Translate) Kal chaudahvin ki raat thi

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
हम भी वहीं मौजूद थे हम से भी सब पूछा किए
हम हँस दिए हम चुप रहे मंज़ूर था पर्दा तिरा
इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटीं महफ़िलें
हर शख़्स तेरा नाम ले हर शख़्स दीवाना तिरा
कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएँ मगर
जंगल तेरे पर्वत तेरे बस्ती तिरी सहरा तिरा
एहसान है क्या क्या तिरा हुस्न-ए-बे-परवा तिरा
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा
बे-दरेग़ बे-अमाँ हम ने कभी की है फ़ुग़ाँ
हम को तिरी वहशत सही हम को सही सौदा तिरा
हम पर ये सख़्ती की नज़र हम हैं फ़क़ीर-ए-रहगुज़र
रस्ता कभी रोका तिरा दामन कभी थामा तिरा
हाँ हाँ तिरी सूरत हसीं लेकिन तू ऐसा भी नहीं
इक शख़्स के अशआ'र से शोहरा हुआ क्या क्या तिरा
बेदर्द सुननी हो तो चल कहता है क्या अच्छी ग़ज़ल
आशिक़ तिरा रुस्वा तिरा शाइर तिरा 'इंशा' तिरा

Posted by Raees Khan

Comments

Popular posts from this blog