जो हम पे गुजरे हैं रंज सारे - Jo hum pe guzre hain ranj saare

गज़ल

जो हम पे गुज़रे थे रंज सारे जो ख़ुद पे गुज़रे , तो लोग समझे 
जब अपनी  अपनी मोहब्बतों के अज़ाब झेले, तो लोग समझे


वो जिन  दरख़्तों  की छाँव में से  मुसाफ़िरों को उठा दिया था
उन्हीं दरख़्तों पे अगले मौसम जो फल न उतरे, तो लोग समझे


उस एक  कच्ची सी  उम्र वाली के  फ़ल्सफ़े को कोई न समझा 
जब उसके कमरे से लाश निकली ख़ुतूत निकले, तो लोग समझे


वो ख़्वाब थे ही चम्बेलियों से सो सब ने हाकिम की कर ली बैअत 
फिर  इक चम्बेली की  ओट में से जो साँप निकले, तो लोग समझे


वो गाँव का इक ज़ईफ़ दहक़ाँ सड़क के बनने पे क्यूँ ख़फ़ा था 
जब उन के बच्चे जो शहर जाकर कभी न लौटे, तो लोग समझे


Posted by ! Raees Khan

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